आज मैंने दो समाचार सुने या पढे। एक, मध्य प्रदेश के लिए विधान सभा की चुनाव तिथियों की घोषणा कर दी गई है, और दो कि राहुल गांधी चुनाव प्रचार करने जबलपुर आए थे।
आगे भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह जबलपुर का दौरा करेंगे। राहुल गांधी की यात्रा और रैली पहले से ही फेसबुक और ट्विटर् पर छाई है और कल स्थानीय समाचार पत्रों पर सभी मिसालों और धमालों के साथ प्रकाशित हो जाएगी । पर कहीं भी इन राष्ट्रीय स्तर के नेता द्वारा किसी स्थानीय नेता का नाम लेकर उन्हें प्रायोजित या प्रसारित किया हो , ये नहीं पढने या सुनने में आता है.
मुझे आश्चर्य होता है इस सारी चुनावी प्रक्रिया में स्थानीय नेताओं की दावेदारी , उनके वादों की फेहरिस्त या खबरों की अनुपस्थिति क्यों है?
मेरे शहर की प्रवृत्ति ओर स्टाइल होर्डिंग्स की राजनीति है। न कोई संपर्क, न प्रचार, न जन सभा बस बड़े बड़े होर्डिंग जो सारे शहर की सड़कों ओर बिल्डिंग्स के ऊपर रातों रात लगा दिए जाते हैं- राजनीतिक नेताओं के बड़े और छोटे होर्डिंग ।लगता है राजनीती आज कल बस सस्ते में बनने वाले होर्डिंग से ज्यादा अब कुछ भी नहीं बची है. यही सही पर फिर भी हमारे निर्वाचन क्षेत्र के मौजूदा विधायक या स्थानीय नेताओं की कोई होर्डिंग ढूंढना कम से कम मेरे लिए तो मुस्किल रहा है .
पहली खबर के बारे में . म. प्र. में 28 नवंबर, २०१८ के लिए चुनाव तिथियों की घोषणा की गई है। आज 06 अक्टूबर 2018 है , इसका मतलब चुनाव के लिए 45 दिनों से बस कुछ अधिक समय ही बाकी है।
ओर अब तक यदि चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों की आधिकारिक घोषणा नहीं की जाती है या अभी तक सामान्य रूप से ज्ञात नहीं है, तो ” तथाकथित” व् ” सम्मानित” मतदाताओं को यह तय करने का समय कितना मिलता है कि वे अपने प्रतिनिधियों के रूप में किसका चयन करना चाहते हैं? या शायद आम जनता जो राजनीती के व्यवसाय से परे है उन्हें आधिकारक रूप से बेवकूफ मान लिया गया है की उन्हें इन सब बातों से फर्क ही क्या पड़ता है ? उन्हें समझ ही कहाँ आता है की उनकी नज़र के सामने उनके नीचे की जमीन तक छीनी जा चुकी है ?
और यदि राहुल गांधी और अमित शाह ही वे हैं जो स्थानीय कस्बों ओर शेहरों में प्रचार करते हैं जिन्हें आम जनता को मिलना या उनकी शिकायत को संचारित करने में बहुत मुश्किल होगी , तो हम किसके लिए वोट दे रहे हैं? दिल्ली या भोपाल में बैठने वाले नेताओं को ? हम क्या हमारे शहर में दिक्कत होने पर भोपाल या दिल्ली जाएँ , आगे से सीधे राहुल गाँधी या मुख्यमंत्री के पास जाना है, ये बताया ओर सिखाया जा रहा है ?
एक पूरा माहौल बनाया जाता है की देश में दो पार्टियों की जंग है . न कोई स्थानीय नेता की खबर है , न स्थानीय मुद्दों या दिक्कतों की बात है. या शायद लोग आब मायने ही नहीं रखते?
पर एक आदमी तो पुरे देश में नहीं रहता ओर न ही ज्यादातर लोगों का इन पार्टीयों या इनके नेताओं के जैसे पुरे देश से संभंधित इतने फायदे वाला व्यवसाय होता है. वो तो किसी विशेष शहर , किसी खास मोहल्ले में ही रहता ओर अपना काम या नौकरी करता है ओर उसकी समस्यां ज्यादा से ज्यादा उसके शहर तक सीमित होती हैं.
तो क्या वह सिर्फ राझ्धानीयों ने नियंत्रित राजनीति दल हैं जिनके लिए चुनाव होते है बजाय हमारे शहर में नजदीक रहने वाले वास्तविक हाड़ मांस के व्यक्तियों के लिए ? जिनसे हम कम से कम उम्मीद तो कर सकते हैं की वे पास में रहते है, कोई स्थानीय संपर्क के सहारे हम उन तक पहुंच सकते हैं , कोई समस्या हो तो बता सकते हैं और उनके बस में हो तो मदद मांग सकते हैं?
लगता तो यही है की चुनाव सिर्फ दिल्ली या भोपाल से नियंत्रित पार्टियों के लिए होते है ओर दिखावे के लिए छोटे छोटे शहरों ओर कसबो के नेताओं को इस सर्कस में भरती कर लिया जाता है. जैसे कोई बड़ी कंपनी को छोटी जगहों पे सेल्समैन या डिस्ट्रीब्यूटर की जरुरत होती है पर सारे निर्णय किसी बड़े शहर में कंपनी के हेड क्वार्टर में चुप चाप लिए जाते है.